शारीरिक स्वास्थ्य एवं सुचारु क्रियाशीलता के लिए शरीर को विभिन्न खनिज लवणों को ग्रहण करना बहुत आवश्यक है। शरीर की रक्षा और रोग प्रतिरोधकता, अनेक रासायनिक क्रियाओं को चलाने आदि के लिए खनिज लवण उपयोगी हैं। रक्त के निर्माण, हड्डियों एवं दाँतों के लिए विशेष भूमिका होने के साथ-साथ शरीर को सुदृढ़ एवं शक्तिशाली बनाने में भी यह विशेष सहायता प्रदान करते हैं।
कैल्शियम, खनिज लवणों में अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है। शरीर में कुल जितनी मात्र लवणों की पाई जाती है, उसमें से लगभग 50% भाग कैल्शियम का होता है स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में लगभग 1300 ग्राम कैल्शियम पाया जाता है। जिसकी कुल मात्रा में से लगभग 18% भाग हड्डियों और दाँतों में पाया जाता है, शेष मात्रा रक्त एवं मांसपेशियों में सम्मिलित रहती है।
प्राप्ति के स्रोत-
कैल्शियम का सबसे प्रमुख स्रोत दूध होता है। साथ ही दूध में उपस्थित कैल्शियम को सरलता से रक्त के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इसके अलावा अन्य कई प्रकार के खाद्य पदार्थों के उपयोग से भी कैल्शियम प्राप्त किया जा सकता है- मक्खन, फूल गोभी, बंद गोभी, पनीर, तेल, हरी पत्तेदार सब्जियां, बादाम, सेम, अंडा, शलजम, शकरकंद, सोयाबीन, मछली, गाजर, सूखे मेवे, दालें आदि सभी से कैल्शियम अच्छी मात्रा में ग्रहण किया जा सकता है। इन सबके अतिरिक्त शरीर में कैल्शियम की कमी होने पर बाजार में कैल्शियम की गोलियां ऑस्टोकेल्शियम तथा अन्य दवाइयां भी उपलब्ध रहती हैं।
शोषण एवं संचय-
कैल्शियम का मुख्य प्रयोग छोटी हाथ में होता है। शैशवावस्था, किशोरावस्था, गर्भावस्था एवं दुग्धपान कराने की अवस्था में कैल्शियम का शोषण अधिक हो जाता है। क्योंकि, इन अवस्थाओं में कैल्शियम की आवश्यकता अधिक होती है। कैल्शियम का संचय अस्थियों और दाँतों में अधिक होता है।
कैल्शियम के कार्य-
1. कैल्शियम का प्रमुख कार्य अस्थियों एवं दाँतों का निर्माण करना है।
2. क्षतिग्रस्त अस्थियों एवं मांसपेशियों को ठीक करने में भी कैल्शियम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है
3. कैल्शियम, घावों को जल्दी भरने में सहायता करता है।
4. कैल्शियम हृदय की गति को नियंत्रित करता है।
5. कैल्शियम शरीर की समुचित वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक खनिज तत्व है।
6. कैल्शियम रक्त का थक्का जमने में भी सहायता प्रदान करता है।
7. कैल्शियम शरीर की सभी मांसपेशियों के सिकुड़ने एवं फैलने में सहायता करता है।
8. क्षतिग्रस्त अस्थियों एवं मांसपेशियों को ठीक करने में भी कैल्शियम महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कैल्शियम की कमी से हानियाँ-
कैल्शियम की कमी से शरीर में बहुत सारी व्याधियों और कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं। चूँकि, कैल्शियम हमारे शारीरिक विकास का मुख्य आधार है इसीलिए कैल्शियम की आपूर्ति पर विशेष ध्यान देना बहुत आवश्यक है-
1. कैल्शियम के अभाव में शरीर का समुचित विकास और वृद्धि संभव नहीं है।
2. कैल्शियम की कमी से हड्डियां कमजोर तथा भंग हो सकती हैं।
3. कैल्शियम की कमी से बच्चों में स्थायी दांत काले से एवं टेढ़े मेढ़े निकल सकते हैं साथ ही उनका पूर्ण विकास भी अवरुद्ध हो सकता है।
4. कैल्शियम की कमी से बच्चों की हड्डियां कभी-कभी विकृत भी हो जाती हैं। अस्थियों के टेढ़े मेढ़े होने को ही रिकेट्स रोग कहते हैं। इसमें विशेषकर हाथों और पैरों की अस्थियां टेढ़ी हो जाती हैं।
5. कैल्शियम की कमी होने से रक्त का थक्का आसानी से नहीं जमता, जिसके कारण चोट लगने पर अधिक रक्त बहने से मृत्यु भी हो सकती है।
6. कैल्शियम की कमी होने से शरीर और पेशियों में जल्दी ही थकान आ जाती है, जिसके कारण व्यक्ति थोड़ा परिश्रम करने पर भी ज्यादा थकान अनुभव करने लगता है।
7. प्रौढ़ावस्था में कैल्शियम के अभाव में ऑस्टोमलेशिया अथवा ओस्टियोपोरोसिस नामक रोग हो जाते हैं जिससे अस्थियां स्वयं ही घुलने लगती हैं और लगातार कमजोर होने लगती हैं।
8. गर्भवती स्त्रियों को आहार में कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा लेनी चाहिए, क्योंकि कैल्शियम के अभाव में गर्भ में पल रहा शिशु माता के शरीर से कैल्शियम अवशोषित करने लगता है। जिससे माता के कूल्हे की अस्थि लचीली एवं संकीर्ण हो जाती है। जिससे शिशु का प्रसव कठिन एवं अस्वाभाविक भी हो जाता है।
9. स्तनपान कराने वाली माताओं की भी अस्थियां लचीली एवं कमजोर हो सकती हैं, क्योंकि लगभग 400 मिलीग्राम कैल्शियम प्रतिदिन दूध के शरीर के रूप में शरीर से बाहर निकलता रहता है।
किस अवस्था में कितना कैल्शियम चाहिए-
प्रति व्यक्ति कैल्शियम की आवश्यकता आयु के साथ-साथ पहले बढ़ती है तथा प्रौढ़ावस्था के बाद धीरे-धीरे घटती रहती है। परंतु गर्भवती महिला को एवं स्तनपान कराने वाली माताओं को कैल्शियम की सर्वाधिक मात्रा की आवश्यकता पड़ती है। कैल्शियम की प्रतिदिन प्रति व्यक्ति आवश्यकता को इस सारणी से समझा जा सकता है।
अवस्थाएं आवश्यक मात्रा (मिलीग्राम में)
1. 1 माह से 2 वर्ष तक- 560
2. 2 वर्ष से 10 वर्ष तक- 540
3. 10 वर्ष से 19 वर्ष तक- 700
4. युवावस्था- 500
5. प्रौढ़ावस्था- 450
6. वृद्धावस्था- 400
7. गर्भावस्था- 1150
8. स्तनपान की अवस्था- 2200