क्रोध के आवेश में व्यक्ति के विवेक का नाश हो जाता है। गुस्से में वह परिस्थितियां, लाभ, हानि का विचार किए बिना ही उग्र उत्तेजित हो जाता है। जिसके कारण दूसरों व स्वयं को काफी हानि भी पहुंचा सकता है। क्रोध को मनुष्य का शत्रु भी माना जाता है। क्षणिक आक्रोश को नियंत्रण करने के लिए ये सामान्य तरीके अपनाकर हम अपना और दूसरों के हितों की रक्षा कर सकते हैं-
1. गहरी सांस लें-
जब भी गुस्सा आए या फिर गुस्सा आने की संभावना बने तो शांत मन से धीमे-धीमे गहरी सांसे लेना शुरू कर दें।
2. धैर्य बनाए रखें-
जब भी क्रोध और आवेश आए तो स्वयं कुछ क्षणों के लिए ठहर जाएं और आवेश में आकर कोई भी निर्णय तुरंत ना करें। शांत मन से किए गए कार्य व निर्णय ही हितकारी हो सकते हैं। कुछ देर शांत रहने पर खुद का आवेश स्वयं ही शांत हो जाएगा।
3. ठंडे पानी से मुंह धोएं:-
क्रोध की अवस्था में जल्दी ही ठंडे पानी से मुंह धोने का प्रयास करें या नल के नीचे बहते पानी में पूरे सिर को कुछ सेकेंड तक लगाए रखें। इससे दिमाग व मन को बहुत ठंडक मिलेगी। उसके बाद खुली हवा या पंखे कूलर के सामने बैठे, तब तक कुछ ही देर में गुस्सा शांत हो जाएगा।
4. योग व्यायाम-
योग व प्राणायाम के नियमित अभ्यास से उग्र स्वभाव स्वतः ही शांत और सामान्य हो जाता है।
5. पुनर्विचार करें-
गुस्सा करने से सुधार भले ही ना हो लेकिन परिस्थितियां और ज्यादा जरूर बिगड़ सकती हैं। इसलिए क्रोध के प्रारंभिक स्तर में ही यह सोचें कि गुस्सा करने से क्या लाभ होगा।
6. अहंकार का त्याग-
“केवल मैं ही सही तुम गलत” जैसे अहंकारी भावना से ही अधिकांश पारिवारिक व सामाजिक संबंध भी बिगड़ जाते हैं। अभिमान को घटाकर ही क्रोध से होने वाली हानियों से बचा जा सकता है।
7. शारीरिक परिश्रम-
क्रोध की स्थिति से ध्यान हटाने के लिए और ज्यादा शारीरिक परिश्रम करें। खेलकूद, साइकलिंग, स्विमिंग, रनिंग करके शारीरिक थकान होने से मन खुद ही ठीक हो जाएगा और आप आराम की अवस्था में आ जाएंगे।
8. इतिहास से सबक-
अनेक घटनाओं व ऐतिहासिक प्रसंगों को देखकर भी समझा जा सकता है कि क्रोध व प्रतिशोध की अग्नि ने कितने बड़े-बड़े साम्राज्य व सभ्यताओं को भी नष्ट कर दिया। स्वयं के साथ अपनों व अन्य को भी भारी हानि होती है। क्रोध से युद्ध और युद्ध से केवल विनाश ही होता है।
9. संवाद और वार्ता-
वास्तव में संवाद हीनता से ही आपस में मनमुटाव पैदा होता है। आपस में मतभेद व असहमति किसी से भी हो सकते हैं, लेकिन इस असहमति की स्थिति को संबंधों पर हावी नहीं होने देना चाहिए। ऐसी परिस्थिति में चिड़चिड़ाहट, झुंझलाहट या गुस्से से बचते हुए आमने-सामने बैठकर खुलकर चर्चा करने की संभावना बनानी चाहिए। ताने मारने अथवा बातों को पकड़कर बैठने तथा “अब कुछ नहीं हो सकता” जैसे भाव मन में नहीं लाएं। सकारात्मक विचार रखते हुए संवाद जारी रखने का प्रयास करना चाहिए।
10. परिणाम का विचार-
गुस्से में व्यक्ति किसी भी सीमा तक जाकर सामने वाले को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता है। कई बार तो क्रोधित व्यक्ति खुद को, परिजनों को या अन्य वस्तुओं को भी हानि पहुंचा देता है। लेकिन, नुकसान करने से पहले ही उसके परिणामों के बारे में कुछ पल ठहर कर सोच लिया जाए तो इस अवस्था में भी संयम रखा जा सकता है। मान हानि, जन हानि, धन हानि से भी बचा जा सकता है।
11. आध्यात्मिक शक्ति-
धार्मिक व आध्यात्मिक कार्यक्रमों में भागीदारी करके मन में बहुत से विचारों में सकारात्मक परिवर्तन किया जा सकता है। सामाजिक आयोजनों व सामुदायिक कार्यक्रमों से मन की भावनाएं भी शांत व सुदृढ बनती हैं।