जब किसी भी कारणवश भोज्य पदार्थ गुण व परिमाण में अपर्याप्त मात्रा में लिए जाएं और उस भोजन द्वारा शारीरिक आवश्यकता की पूर्ति ना हो पाए, तो वह कुपोषण की स्थिति कहलाती है। कुपोषण का अर्थ अव्यवस्थित अथवा अनुपयुक्त भोजन से भी है यह आवश्यकता से अधिक या कम पोषक तत्व लेने के कारण भी उत्पन्न हो सकता है।
कुपोषण के अनेक संभावित कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ का विवरण यहां दिया गया है-
1. अपर्याप्त भोजन-
मनुष्य के शरीर का पोषण भोजन के माध्यम से ही संभव है। शरीर की आवश्यकता से कम भोजन ग्रहण करने पर शरीर को मिलने वाले पौष्टिक तत्वों में भी कमी आ जाती है। इस कारणवश कुपोषण की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और व्यक्ति के स्वास्थ्य में भी गिरावट आ जाती है। इसलिए हमेशा शारीरिक आवश्यकता के अनुरूप ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
2. अनुचित भोजन-
कई खाद्य-पदार्थ पोषण की दृष्टि से शरीर के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। ये पदार्थ शरीर की क्रियाशीलता, वृद्धि एवं विकास में बाधक भी होते हैं तथा ये पाचन- तंत्र को भी अव्यवस्थित एवं अनियमित करते हैं। अनुचित भोजन के कारण भी कुपोषण की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। इसीलिए केवल उचित और लाभकारी भोजन का ही सेवन करना चाहिए।
3. आयु, शारीरिक अवस्था एवं कार्य की प्रकृति से अनुपयुक्त भोजन-
भिन्न-भिन्न आयु वर्ग, लिंग, कार्यशीलता तथा जीवन शैली की विभिन्न अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार का भोजन लाभकारी और स्वास्थ्यप्रद होता है। उचित भोजन से ही उचित पोषण की प्राप्ति हो सकती है। अतः आयु, शारीरिक अवस्था व कार्यशैली की आवश्यकता के अनुरूप ही भोजन ग्रहण करना चाहिए।
4. सामाजिक-आर्थिक कारण-
कुपोषण के प्रमुख कारणों में से सामाजिक-आर्थिक कारण भी एक है। व्यक्ति की आर्थिक स्थिति के आधार पर ही भोज्य पदार्थों की उपलब्धता निर्भर करती है। सामाजिक प्रतिबंधन तथा सामाजिक मान्यताएं एवं रीति-रिवाज और अंधविश्वास, उपवास आदि भी कुपोषण में योगदान देते हैं।
5. अस्वास्थ्यप्रद वातावरण-
शुद्ध वायु, सूर्य का प्रकाश तथा स्वच्छता का निरंतर अभाव भी कुपोषण में वृद्धि करते हैं। इसलिए हमें प्राकृतिक वातावरण एवं आसपास की परिस्थितियों का भी संशोधन करना चाहिए।
6. अनिद्रा या नींद की कमी-
व्यक्ति को स्वस्थ एवं तनाव रहित रखने के लिए पूर्ण निद्रा भी अत्यंत आवश्यक है। नींद के अभाव अथवा अनिद्रा की स्थिति में पौष्टिक भोजन की उपयोगिता भी समाप्त हो जाती है। इसीलिए मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यकतानुसार नींद लेना बहुत महत्वपूर्ण है।
7. अज्ञानता-
भारत तथा अन्य विकसित एवं विकासशील देशों में कुपोषण का एक प्रमुख कारण अज्ञानता भी है। अधिकतर लोग अज्ञानतावश, भोज्य पदार्थ उपलब्ध होने पर भी स्वयं को कुपोषण की ओर अग्रसर कर लेते हैं। विटामिन तथा खनिज लवण युक्त भोजन ग्रहण ना करना अज्ञानता का ही प्रतीक है। आम व्यक्ति की यही अवधारणा है कि पौष्टिक आहार केवल महंगे साधनों द्वारा ही प्राप्त किए जा सकते हैं, जबकि यह विचार सही नहीं है। कई भोज्य पदार्थ ऐसे होते हैं, जो सस्ते होते हुए भी पौष्टिक एवं स्वास्थ्यप्रद होते हैं।
8. भोजन सम्बन्धी व्यवहार-
दोषपूर्ण भोजन संबंधी अनेक आदतें भी कुपोषण को जन्म देने में सहायक होती हैं जैसे-
1. अधिक तला, मसालेदार भोजन लेना।
2. देर से या अधिक अन्तराल पर भोजन लेना।
3. कम अन्तरालों पर बार-बार भोजन ग्रहण करना।
4. भोजन सम्बन्धी रुचि- अभिरुचि।
5. मद्यपान अथवा अधिक चाय, कॉफी, सिगरेट, तम्बाकू आदि का प्रयोग करना।
इन आहार सम्बन्धी आदतों में सुधार करके भी हम कुपोषण या अन्य समस्याओं से बचाव कर सकते हैं।